Category Archives: दिल का सौदा

हिन्दू धर्म संदेश-ज्ञान आदमी को घमंडी भी बना देता है


महाराज भर्तृहरि नीति दर्शन के अनुसार
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यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवम्
तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिपतं मम मनः
यदा किञ्चित्किाञ्चिद् बुधजनसकाशादवगतम्
तदा मूर्खोऽस्मीति जवन इव मदो में व्यपगतः
हिंदी में भावार्थ –जब मुझे कुछ ज्ञान हुआ तो मैं हाथी की तरह मदांध होकर उस पर गर्व करने लगा और अपने को विद्वान समझने लगा पर जब विद्वानों की संगत में बैठा और यथार्थ का ज्ञान हुआ तो वह अहंकार ज्वर की तरह उतर गया तब अनुभव हुआ कि मेरे समान तो कोई मूर्ख ही नहीं है।
वरं पर्वतदुर्गेषु भ्रान्तं वनचरैः सह
न मूर्खजनसम्पर्कः सुरेन्द्रभवनेष्वपि
हिंदी में भावार्थ – बियावान जंगल और पर्वतों के बीच खूंखार जानवरों के साथ रहना अच्छा है किंतु अगर मूर्ख के साथ इंद्र की सभा में भी बैठने का अवसर मिले तो भी उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।
वर्तमान सन्दर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य की पंच तत्वों से बनी इस देह में मन, बुद्धि तथा अहंकार स्वाभाविक रूप से रहते हैं। अच्छे से अच्छे ज्ञानी को कभी न कभी यह अहंकार आ जाता है कि उसके पास सारे संसार का अनुभव है। इस पर आजकल अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लोग तो यह मानकर चलते हैं कि उनके पास हर क्षेत्र का अनुभव है जबकि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान के बिना उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। सच तो यह है कि आजकल जिन्हें गंवार समझा जाता है वह अधिक ज्ञानी लगते हैं क्योंकि वह प्रकृति से जुड़े हैं और आधुनिक शिक्षा प्राप्त आदमी तो एकदम अध्यात्मिक ज्ञान से परे हो गये हैं। इसका प्रमाण यह है कि आजकल हिंसा में लगे अधिकतर युवा आधुनिक शिक्षा से संपन्न हैं। इतना ही नहीं अब तो अपराध भी आधुनिक शिक्षा से संपन्न लोग कर रहे हैं।
जिन लोगों के शिक्षा प्राप्त नहीं की या कम शिक्षित हैं वह अब अपराध करने की बजाय अपने काम में लगे हैं और जिन्होंने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त की और इस कारण उनको आधुनिक उपकरणों का भी ज्ञान है वही बम विस्फोट और अन्य आतंकवादी वारदातों में लिप्त हैं। इससे समझा जा सकता है कि उनके अपने आधुनिक ज्ञान का अहंकार किस बड़े पैमाने पर मौजूद है।
आदमी को अपने ज्ञान का अहंकार बहुत होता है पर जब वह आत्म मंथन करता है तब उसे पता लगता है कि वह तो अभी संपूर्ण ज्ञान से बहुत परे है। कई विषयों पर हमारे पास काम चलाऊ ज्ञान होता है और यह सोचकर इतराते हैं कि हम तो श्रेष्ठ हैं पर यह भ्रम तब टूट जाता है जब अपने से बड़ा ज्ञानी मिल जाता है। अपनी अज्ञानता के वश ही हम ऐसे अल्पज्ञानी या अज्ञानी लोगों की संगत करते हैं जिनके बारे में यह भ्रम हो जाता है वह सिद्ध हैं। ऐसे लोगों की संगत का परिणाम कभी दुखदाई भी होता है। क्योंकि वह अपने अज्ञान या अल्पज्ञान से हमें अपने मार्ग से भटका भी सकते हैं।

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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

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रहीम के दोहे:हंसिनी चुनती है केवल मोती


मान सहित विष खाप के, संभु भय जगदीश
बिना मान अमृत पिए, राहू कटाए शीश

कविवर रहीम कहते हैं सम्मान के के साथ विषपान कर शिव पूरे जगत में भगवान् स्वरूप हो गए. बिना सम्मान के अमृत-पान कर राहू ने चंद्रमा से अपना मस्तक कटवा लिया.

भाव-हमें वही कार्य करना चाहिए जिससे सम्मान मिले. समाज हित में कार्य करना विष पीने लायक लगता है पर प्रतिष्ठा उसी से ही बढती है. अपने स्वार्थ के लिए कार्य करने से यश नहीं बढ़ता बल्कि कई बार तो अपयश का भागी बनना पड़ता है. इसका एक आशय यह भी है हमें जो चीज सहजता और सम्मान से मिले स्वीकार करना चाहिए और कहीं हमें अपमान और घृणा से उपयोगी वस्तु भी मिले तो उसे त्याग देना चाहिए.

मान सरोवर ही मिले, हंसी मुक्ता भोग
सफरिन घरे सर, बक-बालकनहिं जोग

कवि रहीम कहते हैं की हंसिनी तो मान सरोवर में विचरण करती है और केवल मोतियों को ही चुनकर खाती है. सीपियों से भरे तालाब तो केवल बगुले और बच्चों के क्रीडा स्थल होते हैं.

भाव- विद्वान् और ज्ञानी व्यक्ति सदैव अपने जैसे लोगों से व्यवहार रखते हैं और उनके अमृत वचन सुनते हैं, किन्तु जो मूर्ख और अज्ञानी हैं वह सदैव बुरी संगति और आमोद-प्रमोद में अपना समय नष्ट करते हैं. जिस तरह हंसिनी केवल मानसरोवर में विचरण करती है उसी तरह ज्ञानी लोग सत्संग में अपने मन के साथ विचरण करते हुए अपना समय बिताते और ज्ञान प्राप्त करते हैं.

दिल का क्या हिसाब रखते


जिस राह से गुजरे हम
वहीं हमसफ़र मिलते गये
वह अपनी मंजिल पर आकर रुके
हम अपनी राह पर चलते गये
किसी से बिछडे तो किसी से मिले
अपना कारवां लिए बढते रहे
जो बिछडे क्या उनका पता रखते
क्या भला अपनी उनको खबर करते
जो साथ होते
उनसे ही निभाने से फुर्सत कहाँ होती
अपनी राह पर हम चलते रहे
कहीं रास्ते में नहीं होंगे हमारे पैर के निशान
कहीं नहीं होगी हमारे नाम की इबारत
हमारे आगे जाते ही सब मिटते गये
हो सकता है कि किसी के दिल में
हमारे लिए जगह हो
क्योंकि दिल पर नहीं होता बस किसी का
अगर बसे तो बस ही गये
करते हों शायद वह लोग
जिन्हें हम खुद भूल गए
दिलों को पढ़ना कहाँ संभव
किसके दिन में कैसे बसे
किसकी आंखों के सामने से गुजरे
और उसके दिल में बसे
और कहाँ बाहर से ही निकल गए
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हास्य कविता -समस्याओं के जंगल में आन्दोलन


किसी के पास ज्ञान का
किसी के पास विज्ञान का
किसी की पास शिक्षा का है ठेका
किसी ने लिया है
इंडियन आइडियल बनाने का
किसी के पास है विश्व चैंपियन
बनाने का ठेका
पालक अपने बालकों को
उनसे पास भेजकर सोचते हैं
सब काम अपने आप हो जायेंगे
अब वह सिरमौर ही बनकर घर आएंगे
जो सफल हो जाते हैं वह
गाते हैं ठेकेदारों की महिमा
जो असफल हौं वह अपनी
किस्मत को दोष देकर रह जाते हैं
हर तरह की गारंटी वाला
सब जगह चल रहा है ठेका

समझौता ग़मों से, दोस्ती नगमों से कर लो


समझौता ग़मों से कर लो

दोस्ती नगमों से कर लो

महफ़िलों में जाकर

इज्जत की उम्मीद छोड़ दो

जहां सब सज-धज के आएं

वहां तुम्हें देखने की किसे फुर्सत है

सभी बोलें कम अपने लबादे

ज्यादा दिखाएँ

सोचें कुछ और

बोलें कुछ और

सुनकर अनुसना कर सकें तो

सबसे बतियाएं

अगर कोई अपने शब्दों से

घाव कर दे

तो उसका इलाज अपनी

तसल्ली और यकीन की

मरहमों से कर लो

कहैं दीपक बापू

अपनी शान दिखाने के चक्कर

तुम कभी न पडना

दूसरों की चमक में

अपने को अंधा न करना

जिनके चेहरे पर जितनी रोशनी है

उतना ही उनके मन में है अँधेरा

तुम अपने यकीन और हिम्मत के

साथ सबके सामने डटे रहो

किसी और में कुछ भी न ढूँढो

साथ अपने हमदमों को कर लो

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रिश्तों को नाम नहीं  देना 

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रिश्तों को नाम देना
लगता है आसान
तब निभाने का
नहीं होता अनुमान
जब दौर आता है
मुसीबत का
अपने ग़ैर हो जाते हैं
ग़ैर फेर लेते हैं मुहँ
रिश्ता कामयाब नहीं कर पाता
अपनी वफ़ा का इम्तहान

कहना कितना आसान लगता है
कि तुम दोस्त ऐसे
मेरे भाई जैसे
तुम सखी ऎसी
बिल्कुल बहिन जैसी
जब आती है घडी निभाने की
तब न भाई का पता
न भाई जैसे दोस्त का पता
न बहिन का पता
न बहिन जैसी का पता
गलत निकलते हैं
अपनेपन के अनुमान

जरा सी बात पर
रिश्ते तैयार हो जाते हैं
होने को बदनाम
फिर भी अपनों से दूर
तुम मत होना
बेवफाई का बदला
तुम वफ़ा से ही देना
दुसरे करते हैं
विश्वास से खिलवाड़
तुम मत करना
कोई कितना भी
रिश्ते को बदनाम करे
तुम निभाते रहना
अपनी नीयत पर डटे रहना
चाहे धरती डोले
या गिरने वाला हो आसमान
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