ऐसा नहीं लगता कि निकट भविष्य में जाति पाति, धर्म, भाषा, और क्षेत्र के आधार पर बने समूहों के आपसी विवाद कोई थम जायेंगें। सच बात तो यह है कि पहले की अपेक्षा यह विवाद बढे़ हैं और इसमें कमी की आशा करना ही व्यर्थ है। समस्या यह है कि लोग देश, समाज, और शहर बनाने की बात तो करते हैं पर व्यक्ति निर्माण की बात कोई नहीं करता। बहसों में इस बात पर चर्चा अधिक होती है कि समाज कैसा है? इस प्रश्न से सभी लोग भागते हैं कि व्यक्ति कैसे हैं?
इन विवादों की जड़ में व्यक्ति के अंदर स्थित असुरक्षा की भावना है जो न चाहते हुए भी अपने समाज का हर विषय पर अंध समर्थन करने को बाध्य करती है। कई बार तो ऐसा होता है कि व्यक्ति सच जानते हुए भी- कि उसके संचालक प्रमुख केवल दिखावे के लिये समूह का हितैषी होने का दावा करते है जिसमें उनका स्वयं का स्वार्थ होता है-अपने समूह का समर्थन करता है। आजादी से पहले या बाद में जानबूझकर समूह बने रहने दिये गये ताकि उनके प्रमुख आपस में मिलकर अपने सदस्यों पर नियंत्रण कर अपना काम चलाते रहें। देश की हालत ऐसी बना दी गयी है कि हर आदमी अपने को असुरक्षित अनुभव करने लगा है और बाध्य होकर विपत्तिकाल में अपने समूह से सहयोग की आशा में उसके प्रमुख के नियंत्रणों को मान लेता है। आधुनिक शिक्षा ने जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्र की भावना को समाप्त करने की बजाय बढ़ाया है। पहले अशिक्षित व्यक्ति चुप रहते थे यह सोचकर कि बड़ लोग ही जाने। मगर अब हालत यह है कि शिक्षित व्यक्ति ही अब समूह के समर्थन में ऐसी गतिविधियां करने लगे हैं कि आश्चर्य होता है। नई तकनीकी का उपयोग करने वाले आतंकवादी इस बात का प्रमाण है।
सर्वजन हिताय की बजाय सर्व समाज हिताय करने की नीति ने आम आदमी को बेबस कर दिया है कि वह अपने समूहों से जुड़ा रहे। अगर हम दैहिक जीवन के सत्यों को देखें तो यहां कोई किसी का नहीं है पर समूह प्रमुखों की प्रचार रणनीति यह है कि हम ही वह भगवान हैं जो तुम्हारा भला कर सकते हैं।
देश में सामान्य व्यक्ति के लिये बहुत कठिनता का दौर है। बेरोजगारी के साथ ही शोषण बढ़ रहा है। शोषित और शोषक के बीच भारी आर्थिक अंतर है। गरीब और आदमी के बीच अंतर की मीमांसा करना तो एक तरह से समय खराब करना है। आजादी के बाद देश की व्यवस्था संचालन में मौलिक रूप से बदलाव की बजाय अंग्रेजों की ही पद्धति को अपनाया गया जिनका उद्देश्य ही समाज को बांटकर राज्य करना था। मुश्किल यह है कि लोग इसी व्यवस्था में बदलाव चाहते हैं बजाय बदलकर व्यवस्था चलाने के। आम आदमी का चिंतन मुखर नहीं होता और जो जो मुखर हैं उनका आम आदमी से कोई लेना देना नहंी है। हर कोई अपना विचार लादना चाहता है पर सुनने को कोई तैयार नहीं।
मुख्य विषय व्यक्ति का निर्माण होना चाहिये जबकि लोग समाज का निर्माण करने की योजना बनाते हैं और उनके लिये व्यक्ति निर्माण उनके लिये गौण हो जाता है। कुछ विद्वान उपभोग की बढ़ती प्रवृत्तियों में कोई दोष नहंी देखते और उनके लिये योग तथा सत्साहित्य एक उपेक्षित विषय है। कभी कभी निराशा होती है पर इसके बावजूद कुछ आशा के केंद्र बिन्दू बन जाते हैं जो उत्साह का संचार करते हैं। इस समय धर्म के नाम पर विवाद अधिक चल रहा है जो कि एकदम प्रायोजित सा लगता है। ऐसे में अगर हम भारतीय धर्म की रक्षा की बात करेें तो बाबा रामदेव जी ने अभी बिटेन में योग केंद्र स्थापित किया है। इसके अलावा भी भारतीय योग संस्थान भी विश्व भर में अपनी शाखायें चला रहा है। ऐसे में एक बात लगती है कि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान अक्षुण्ण रहेगा और धर्म का विस्तार अपने गुणों के कारण होगा। सच बात तो यह है कि योग साधना और ध्यान ऐसी प्रद्धतियां हैं जो व्यक्ति का निर्माण करती हैं। यह हमारे धर्म का मूल स्त्रोत भी है। वह गैरजरूरी उपभोग की वस्तुओं के प्रति प्रवृत्त होने से रोकती हैं। इस देश की समस्या अब यह नहीं है कि यहां गरीब अधिक हैं बल्कि पैसा अधिक आ गया है जो कि कुछ ही हाथों में बंद हैं। यही हाथ अपनी रक्षा के लिये गरीबों में ऐसे लोगों को धन मुहैया कराकर समाज में वैमनस्य फैला रहे हैं ताकि गरीबों का ध्यान बंटा रहे। हम इधर स्वदेशी की बात करते हैं उधर विदेशी वस्तुओं का उपभोग बढ़ रहा है। व्यक्ति अब वस्तुओं का दास हो रहा है और यहींे से शुरुआत होती आदमी की चिंतन क्षमता के हृास की। धीरे धीरे वह मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है। फिर उसके सामने दूसरो समूहोें का भय भी प्रस्तुत किया जाता है ताकि वह आजादी से सोच न सके।
देखा जाये तो सारे समूह अप्रासंगिक हो चुके हैं। मासूम लोग उनके खंडहरों में अपनी सुरक्षा इसलिये ढूंढ रहे हैं क्योंकि राज्य की सुरक्षा का अभाव उनके सामने प्रस्तुत किया जाता है। जबकि आज के समय व्यक्ति स्वयं सक्षम हो तो राज्य से भी उसे वैसी ही सुरक्षा मिल सकती है पर प्रचार और शिक्षा के माध्यम से शीर्ष पुरुष ही ऐसा वातावरण बनाते हैं कि आदमी समर्थ होने की सोचे भी नहीं। ऐसे में उन्हीं लोगों को ईमानदार माना जा सकता है कि जो व्यक्ति निर्माण की बात करे।
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कवि,लेखक और संपादक, दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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शैतान कभी इस जहां में मर ही नहीं सकता। वजह! उसके मरने से फरिश्तों की कदर कम हो जायेगी। इसलिये जिसे अपने के फरिश्ता साबित करना होता है वह अपने लिये पहले एक शैतान जुटाता है। अगर कोई कालोनी का फरिश्ता बनना चाहता है तो पहले वह दूसरी कालोनी की जांच करेगा। वहां किसी व्यक्ति का-जिससे लोग डरते हैं- उसका भय अपनी कालोनी में पैदा करेगा। साथ ही बतायेगा कि वह उस पर नियंत्रण रख सकता है। शहर का फरिश्ता बनने वाला दूसरे शहर का और प्रदेश का है तो दूसरे प्रदेश का शैतान अपने लिये चुनता है। यह मजाक नहीं है। आप और हम सब यही करते हैं।
घर में किसी चीज की कमी है और अपने पास उसके लिये लाने का कोई उपाय नहीं है तो परिवार के सदस्यों को समझाने के लिये यह भी एक रास्ता है कि किसी ऐसे शैतान को खड़ा कर दो जिससे वह डर जायें। सबसे बड़ा शैतान हो सकता है वह जो हमारा रोजगार छीन सकता है। परिवार के लोग अधिक कमाने का दबाव डालें तो उनको बताओं कि उधर एक एसा आदमी है जिससे मूंह फेरा तो वह वर्तमान रोजगार भी तबाह कर देगा। नौकरी कर रहे हो तो बास का और निजी व्यवसाय कर रहे हों तो पड़ौसी व्यवसायी का भय पैदा करो। उनको समझाओं कि ‘अगर अधिक कमाने के चक्कर में पड़े तो इधर उधर दौड़ना पड़ा तो इस रोजी से भी जायेंगे। यह काल्पनिक शैतान हमको बचाता है।
नौकरी करने वालों के लिये तो आजकल वैसे भी बहुत तनाव हैं। एक तो लोग अब अपने काम के लिये झगड़ने लगे हैं दूसरी तरफ मीडिया स्टिंग आपरेशन करता है ऐसे में उपरी कमाई सोच समझ कर करनी पड़ती है। फिर सभी जगह उपरी कमाई नहीं होती। ऐसे में परिवार के लोग कहते हैं‘देखो वह भी नौकरी कर रहा है और तुम भी! उसके पास घर में सारा सामान है। तुम हो कि पूरा घर ही फटीचर घूम रहा है।
ऐसे में जबरदस्ती ईमानदारी का जीवन गुजार रहे नौकरपेशा आदमी को अपनी सफाई में यह बताना पड़ता है कि उससे कोई शैतान नाराज चल रहा है जो उसको ईमानदारी वाली जगह पर काम करना पड़ रहा है। जब कोई फरिश्ता आयेगा तब हो सकता है कि कमाई वाली जगह पर उसकी पोस्टिंग हो जायेगी।’
खिलाड़ी हारते हैं तो कभी मैदान को तो कभी मौसम को शैतान बताते हैं। किसी की फिल्म पिटती है तो वह दर्शकों की कम बुद्धि को शैताना मानता है जिसकी वजह से फिल्म उनको समझ में नहीं आयी। टीवी वालों को तो आजकल हर दिन किसी शैतान की जरूरत पड़ती है। पहले बाप को बेटी का कत्ल करने वाला शैतान बताते हैं। महीने भर बाद वह जब निर्दोष बाहर आता है तब उसे फरिश्ता बताते हैं। यानि अगर उसे पहले शैतान नहीं बनाते तो फिर दिखाने के लिये फरिश्ता आता कहां से? जादू, तंत्र और मंत्र वाले तो शैतान का रूप दिखाकर ही अपना धंध चलाते हैं। ‘अरे, अमुक व्यक्ति बीमारी में मर गया उस पर किसी शैतान का साया पड़ा था। किसी ने उस पर जादू कर दिया था।’‘उसका कोई काम नहीं बनता उस पर किसी ने जादू कर दिया है!’यही हाल सभी का है। अगर आपको कहीं अपने समूह में इमेज बनानी है तो किसी दूसरे समूह का भय पैदा कर दो और ऐसी हालत पैदा कर दो कि आपकी अनुपस्थिति बहुत खले और लोग भयभीत हो कि दूसरा समूह पूरा का पूरा या उसके लोग उन पर हमला न कर दें।’
अगर कहीं पेड़ लगाने के लिये चार लोग एकत्रित करना चाहो तो नहीं आयेंगे पर उनको सूचना दो कि अमुक संकट है और अगर नहीं मिले भविष्य में विकट हो जायेगता तो चार क्या चालीस चले आयेंगे। अपनी नाकामी और नकारापन छिपाने के लिये शैतान एक चादर का काम करता है। आप भले ही किसी व्यक्ति को प्यार करते हैं। उसके साथ उठते बैैठते हैं। पेैसे का लेनदेन करते हैं पर अगर वह आपके परिवार में आता जाता नहीं है मगर समय आने पर आप उसे अपने परिवार में शैतान बना सकते हैं कि उसने मेरा काम बिगाड़ दिया। इतिहास उठाकर देख लीजिये जितने भी पूज्यनीय लोग हुए हैं सबके सामने कोई शैतान था। अगर वह शैतान नहीं होता तो क्या वह पूज्यनीय बनते। वैसे इतिहास में सब सच है इस पर यकीन नहीं होता क्योंकि आज के आधुनिक युग में जब सब कुछ पास ही दिखता है तब भी लिखने वाले कुछ का कुछ लिख जाते हैं और उनकी समझ पर तरस आता है तब लगता है कि पहले भी लिखने वाले तो ऐसे ही रहे होंगे।
एक कवि लगातार फ्लाप हो रहा था। जब वह कविता करता तो कोई ताली नहीं बजाता। कई बार तो उसे कवि सम्मेलनों में बुलाया तक नहीं जाता। तब उसने चार चेले तैयार किये और एक कवि सम्मेलन में अपने काव्य पाठ के दौरान उसने अपने ऊपर ही सड़े अंडे और टमाटर फिंकवा दिये। बाद में उसने यह खबर अखबार में छपवाई जिसमें उसके द्वारा शरीर में खून का आखिरी कतरा होने तक कविता लिखने की शपथ भी शामिल थी । हो गया वह हिट। उसके वही चेले चपाटे भी उससे पुरस्कृत होते रहे।
जिन लड़कों को जुआ आदि खेलने की आदत होती है वह इस मामले में बहुत उस्ताद होते हैं। पैसे घर से चोरी कर सट्टा और जुआ में बरबाद करते हैं पर जब उसका अवसर नहीं मिलता या घर वाले चैकस हो जाते हैं तब वह घर पर आकर वह बताते हैं कि अमुक आदमी से कर्ज लिया है अगर नहीं चुकाया तो वह मार डालेंगे। उससे भी काम न बने तो चार मित्र ही कर्जदार बनाकर घर बुलवा लेंगे जो जान से मारने की धमकी दे जायेंगे। ऐसे में मां तो एक लाचार औरत होती है जो अपने लाल को पैसे निकाल कर देती है। जुआरी लोग तो एक तरह से हमेशा ही भले बने रहते हैं। उनका व्यवहार भी इतना अच्छा होता है कि लोग कहते हैं‘आदमी ठीक है एक तरह से फरिश्ता है, बस जुआ की आदत है।’
जुआरी हमेशा अपने लिये पैसे जुटाने के लिये शैतान का इंतजाम किये रहते हैं पर दिखाई देते हैं। उनका शैतान भी दिखाई देता है पर वह होता नहीं उनके अपने ही फरिश्ते मित्र होते हैं। आशय यह है कि शैतान अस्तित्व में होता नहीं है पर दिखाना पड़ता है। अगर आपको परिवार, समाज या अपने समूह में शासन करना है तो हमेशा कोई शैतान उसके सामने खड़ा करो। यह समस्या के रूप में भी हो सकता है और व्यक्ति के रूप में भी। समस्या न हो तो खड़ी करो और उसे ही शैतान जैसा ताकतवर बना दो। शैतान तो बिना देह का जीव है कहीं भी प्रकट कर लो। किसी भी भेष में शैतान हो वह आपके काम का है पर याद रखो कोई और खड़ा करे तो उसकी बातों में न आओ। यकीन करो इस दुनियां में शैतान है ही नहीं बल्कि वह आदमी के अंदर ही है जिसे शातिर लोग समय के हिसाब से बनाते और बिगाड़ते रहते हैं।
एक आदमी ने अपने सोफे के किनारे ही चाय का कप पीकर रखा और वह उसके हाथ से गिर गया। वह उठ कर दूसरी जगह बैठ गया पत्नी आयी तो उसने पूछा-‘यह कप कैसे टूटा?’
उसी समय उस आदमी को एक चूहा दिखाई दिया। उसने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा-‘उसने तोड़ा!
’पत्नी ने कहा-‘आजकल चूहे भी बहुत परेशान करने लगे हैं। देखो कितना ताकतवर है उसकी टक्कर उसे कम गिर गया। चूहा है कि उसके रूप में शेतान?
वह चूहा बहुत मोटा था इसलिये उसकी पत्नी को लगा कि हो सकता है कि उसने गिराया हो और आदमी अपने मन में सर्वशक्तिमान का शुक्रिया अदा कर रहा कि उसने समय पर एक शैतान-भले ही चूहे के रूप में-भेज दिया।’
याद रखो कोई दूसरा व्यक्ति भी आपको शैतान बना सकता है। इसलिये सतर्क रहो। किसी प्रकार के वाद-विवाद में मत पड़ो। कम से कम ऐसी हरकत मत करो जिससे दूसरा आपको शैतान साबित करे। वैसे जीवन में दृढ़निश्चयी और स्पष्टवादी लोगों को कोई शैतान नहीं गढ़ना चाहिए, पर कोई अवसर दे तो उसे छोड़ना भी नहीं चाहिए।
जैसे कोई आपको अनावश्यक रूप से अपमानित करे या काम बिगाड़े और आपको व्यापक जनसमर्थन मिल रहा हो तो उस आदमी के विरुद्ध अभियान छेड़ दो ताकि लोगों की दृष्टि में आपकी फरिश्ते की छबि बन जाये। सर्वतशक्तिमान की कृपा से फरिश्ते तो यहां कई मनुष्य बन ही जाते हैं पर शैतान इंसान का ही ईजाद किया हुआ है इसलिये वह बहुत चमकदार या भयावह हो सकता है पर ताकतवर नहीं। जो लोग नकारा, मतलबी और धोखेबाज हैं वही शैतान को खड़ा करते हैं क्योंकि अच्छे काम कर लोगों के दिल जीतने की उनकी औकात नहीं होती।
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लाया फंदेबाज कई तस्वीरें
और दिखाते हुए बोला
‘‘दीपक बापू, तुम ही एक दोस्त हो
जिससे हम कुछ कह पाते हैं
पर जबसे किया है ब्लाग तुमने शुरू
हमारे लिये हो गये गुरू
भले ही अमल नहीं करते
पर तुंमसे ज्ञान बहुत पाते हैं
हम चाहते है चलो इस शहर में घूम आयें
तो कुछ बदलाव पायें
देखो यह फोटो
उस शहर में कितना बड़ा होटल है
और यह देखो कितना सुदर पार्क है
वहां एक चमकदार शापिंग माल भी
अब तुम अपने ध्यान लगाने के लिये
किसी जगह का पता मत पूछ लेना
क्योंकि इसका मुझे पता नहीं
और भी बहुत सारी इमारतें देखने लायक हैं
साथ चलो तो घूमकर आ जायें
फोटो देखकर खुश हुए
फिर मूंह बनाकर बोले-
‘‘घूम आयेंगे
कल शवासन में इन जगहों पर
ही जाकर घूम आयेंगे
फिर तुम्हें भी बतलायेंगे
कुछ समझा करो यार
शापिंग माल पर पैसे खर्च करो
तो खूब माल आ जायेगा
टिकिट के पैसे हों तो
वाटर पार्क में भी मजा आयेगा
जो होटल दिखा रहे हो
वह तो हमें बाहर से ही दिख पायेगा
हम देखते हैं इस मायावी दुनियां को
जिसका चेहरा हमेशा चमकता नजर आता है
पर इसके पीछे जो सच छिपा है
वह हमें सब जगह नजर आता है
कहीं पैसे के जोर पर
तो कहीं तलवार के सहारे
इसका रंग और निखर जाता है
सच का इस मायावी चेहरे से कोई नहीं नाता
तुम कहते हो कि
हमारे ध्यान के लिये
किसी सर्वशक्तिमान के दर का पता नहीं
पर हमें तो बस उसका ही आसरा होता
जब हमारा तन और मन थक जाता है
इन फोटो से जब ऊबता है मन
इष्टदेव की प्रतिमा को देखकर ही
प्रफुल्लित हो पाता है
तुम अपने परिवार को लेकर घूम आओ
हम चमकती हुई दुनियां की तस्वीरो के
पीछे छिपे कठोर सत्य से पीछा
छुड़ाकर जायें तो कहां जायें
अपनी कविता लिखकर ही खुश हैं
शब्दों भंडार के तरकस से निकलें तो
अपने निशाने पर जायें
कुछ समझें लोग तो कुछ समझ न पायें
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दीपक भारतदीप द्धारा
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कोई हमारे दर्द को आकर सहलाये
इस चाह में इन्तजार करने का
ज़माना अब नहीं रहा
किसी के दर्द को सहलाकर
हम अपने दिल को तसल्ली कर लें
पर किसी के दिल का हिस्सा बन जाएं
ऐसा नाम कमाना नहीं रहा
जिन्दगी के इस सफर में
हमसफ़र कई बनाते हैं
पर बस जाएं किसी के साथ
जिन्दगी भर के लिए
ऐसा आशियाना अब नहीं रहा
वादे करें खूब
नकली बाग़ में
दिखाए नकली दूब
छोड़ जाएं बेरहम
जब मझधार में रहें डूब
किसी की जिन्दगी में अमृत घोलकर
अपने लिए भी सुख ढूंढ लें
ऐसा कोई सयाना नहीं रहा
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दीपक भारतदीप द्धारा
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मलेशिया में भारतवंशियों के आन्दोलन पर वहाँ की सरकार का बराबर रवैया अत्यंत चिंता का विषय है और हर समय विभिन्न देशों में मानवाधिकारों के हनन का मामला उठाने वाले अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस पर खामोश हैं क्योंकि उस समुदाय की न तो कोई आर्थिक ताकत है और न ही राजनीतिक आधार है.
मलेशिया में भारतवंशियों की हालत इस बात का द्योतक है शांति, सहिष्णुता और सात्विकता के भाव जो हमारे देश के लोगों में हैं और कहीं भी नहीं है. अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक एवं मानवीय स्त्रोतों का अपने लिए खूब इस्तेमाल किया और जब इसके कठिनाई आई तो छोड़ कर चले गए. अंग्रेज जाते-जाते भारत का बंटवारा करते गए ताकि यह देश कभी अधिक शक्तिशाली न बन सके तो भीं उन्होने एक लंबे समय तक भारत विरोधी ताकतों को समर्थन दिया ताकि यह देश विवादों में फंसा रहे. आज पश्चिमी राष्ट्र जिस आतंकवाद के संकट में है वह उनकी ही देन है और यही वजह है एशिया के आम लोगों की उनके साथ कोई सहानुभूति नहीं है. इसके बावजूद किसी में इतना साहस नहीं है कि पश्चिमी मूल के लोगों को तंग कर सके.
भारत के लोगों की आर्थिक ताकत तो बढ़ रही है पर सम्मान नहीं बढ़ रहा, इसका सीधा आशय यही है कि जिनके पास आर्थिक और सामाजिक ताकत है वह समाज की वैसी ही फिक्र नहीं कर रहे जैसे पश्चिमी राष्ट्र के लोग करते हैं, यही कारण है कि पश्चिमी देशो के अलावा जहाँ कहीं भी भारतीय हैं उनको सम्मान नहीं मिलता. यह भी हो सकता है कि विश्व में भारतीय समाज के बढ़ती ताकत से खिसियाह्ट के कारण ऐसा हो रहा हो-क्योंकि इस समाज के धन और शक्ति से संपन्न लोगों से लाभ लेना चाहते हैं इसलिए उनसे सही व्यवहार करते हैं पर मन की खिसियाह्ट श्रमिक और कर्मचारी वर्ग के लोगों पर उतारते हैं.
मलेशिया कोई इतना संपन्न राष्ट्र नहीं है कि वह आर्थिक रूप से भारत की परवाह नहीं करें इसलिए भारत के आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक रूप से संपन्न लोग अपने प्रभाव का उपयोग करें तो ऐसा नहीं है कि वहाँ की सरकार को भारतवंशियों के साथ सही व्यवहार करने का सन्देश दिया जा सके. हालांकि इस्लामिक राष्ट्र होने के साथ वह राजनीतिक रूप से चीन का साथी है और हो सकता है कि भारतवंशियों के साथ दुर्व्यवहार किसी सोची समझी राजनीति के तहत किया जा रहा हो पर अगर भारत के शक्तिशाली लोग अपने समाज के लिए प्रतिबद्धता दिखाएँ तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है. इसमें हमें संदेह नहीं है कि इस समय विश्व के आर्थिक जगत पर भारतीय चमक रहे है पर मन में होते हुए भी अपने समाज के लिए प्रतिबद्धता नहीं दिखाते यही कारण है कि जहाँ जाते हैं वहाँ अपने परिश्रम और लगन से वहाँ का विकास करते हैं पर सामाजिक रूप से सम्मान नहीं अर्जित कर पाते क्योंकि वह अपने समाज से अलग दिखने का प्रयास करते हैं. अब समय आ गया है कि जैसे आर्थिक जगत में दीवारें टूट रहीं है वैसे ही सामाजिक क्षेत्र मी दीवारें तोड़कर पूरे विश्व की भारतीय समाज को एक माना जाना चाहिऐ.
दीपक भारतदीप द्धारा
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