Category Archives: क्षनिअका

दिन में आशीर्वाद, रात को लात-हिन्दी व्यंग्य कविता (din aur rat-hindi satire poem)


करते हैं जो दिन में

नैतिक आदर्श की बात,

बेशर्म बना देती है

उनको अंधियारी काली रात।

चेहरे की लालिमा को

उनके अंतर्मन का तेज न समझना

मेकअप भी निभाता है

चमकने में उनका साथ,

सूरज की रौशनी में

जिस सिर पर आशीर्वाद का हाथ फेरते

उसी की इज्जत पर रखते हैं रात को लात।।

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खुल रही है समाज के ठेकेदारों की कलई

शरीर पर हैं सफेद कपड़े, नीयत में नंगई।

बरसों तक ढो रहा है समाज, सरदार समझकर

हाथ जोड़े खड़े मुस्कराते रहे, दिल जिनसे कुचले कई।।

नारी उद्धार को लेकर, मचाया हमेशा बवाल

मेहनताने में मांगी, हर बार रात को एक कली नई।

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टूट रहा है विश्वास

मर रही है आस।

जिन्होंने दिये हैं नारी उद्धार पर

कई बार दिन में प्रवचन,

करते रहे वही हमेशा

काली रात के अंधियारे में काम का भजन,

देवी की तरह पूजने का दावा करते दिन में

रात को छलावा खेलें ऐसे, जैसे कि हो वह तास। 

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com

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नंबर वन बनने का नुस्खा-हास्य कविता (number one-hasya kavita


चैनल के प्रमुख ने
सभी कार्यकताओं को बुलाकर
प्रतिस्पर्धात्मक स्तर में
नंबर एक पर पहुंचने का नुस्खा बताया।
और कहा-‘
‘‘अब आ रहा है त्यौहारों का मौसम
इसे मत करो जाया।
फिल्मी सितारों
क्रिकेट खिलाड़ियों
तथा सभी प्रसिद्धि हस्तियों के घर के द्वार पर
कर दो अपने कैमरों की छाया।
गणेश चतुर्थी और नवदुर्गा के अवसर पर कोई मूर्ति
बाहर से घर ले आयेगा
तो फिर कोई उसे छोड़ने जायेगा।
कोई दोनों ही काम न करे तो भी
मंदिर में जाकर दर्शन के बहाने प्रचार चाहेगा।
इधर चल रहा है रमजान का महीना
कोई इफ्तार की दावत से
और बाद में ईद से
अपना मेहमानखाना भी सजायेगा।
फिर आ रहा है दशहरा और दिवाली
नहीं जाना चाहिये कोई मौका खाली
इससे जुड़ी हर खबर
टूटी खबर (ब्रेकिंग न्यूज) बनानी है
किसी तरह अपने टीआरपी रैकिंग बढ़ानी है
अगर पूरी तरह सफल रहे तो
समझो अच्छा बोनस मिल जायेगा।
किसी दूसरे चैनल ने बाजी मारी तो
वेतन का भी टोटा पड़ जायेगा।
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सोचना और सच का सामना -हास्य व्यंग्य और कवितायें (sach ka samana-hindi vyangya aur kavitaen)


ख्याल कभी सच नहीं होते
आदमी की सोच में बसते ढेर सारे
पर ख्याल कभी असल नहीं होते।
कत्ल का ख्याल आता है
कई बार दिल में
पर सोचने वाले सभी कातिल नहीं होते।
धोखे देने के इरादे सभी करते
पर सभी धोखेबाज नहीं होते।
हैरानी है इस बात की
कत्ल और धोखे के ख्याल भी
अब बीच बाजार में बिकने लगे हैं
सच की पहचान वाले लोग भी अब कहां होते।।

…………………………..

आदमी का दिमाग काफी विस्तृत है और इसी कारण उस अन्य जीवों से श्रेष्ठ माना जाता है। यह दिमाग उसे अगर श्रेष्ठ बनाता है पर इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि अगर उस पर कोई कब्जा कर ले तो वह गुलाम भी बन जाता है। इसलिये इस दुनियां में समझदार आदमी उसे ही माना जाता है जो बिना अस्त्र शस्त्र के दूसरे को हरा दे। अगर हम यूं कहे कि बिना हिंसा के किसी आदमी पर कब्जा करे वही समझदार है। हम इसे अहिंसा के सिद्धांत का परिष्कृत रूप भी कह सकते हैं।
अंग्रेजों ने भारत को डेढ़ सौ साल गुलाम बनाये रखा। वह हमेशा इसे गुलाम बनाये नहीं रख सकते थे इसलिये उन्होंने ऐसी योजना बनायी जिससे इस देश में अपने गोरे शरीर की मौजूदगी के बिना ही इस पर राज्य किया जा सके। इसके लिये उन्होंने मैकाले की शिक्षा पद्धति का सहारा लिया। बरसों से बेकार और निरर्थक शिक्षा पद्धति से इस देश में कितनी बौद्धिक कुंठा आ गयी है जिसे अभी दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम सच का सामना में देखा जा सकता है।
‘आप अपने पति का कत्ल करना चाहती थीं?’
‘आप अपनी पत्नी को धोखा देना चाहते थे?’
पैसे मिल जायें तो कोई भी कह देगा हां! हैरानी है कि समाचार चैनल कह रहे हैं कि ‘हां, कहने से पूरा हिन्दुस्तान हिल गया।’
सबसे बड़ी बात यह है कि लोग सच और ख्याल के बीच का अंतर ही भूल गये हैं। कत्ल का ख्याल आया मगर किया तो नहीं। अगर करते तो जेल में होते। अगर धोखे का ख्याल आया पर दिया तो नहीं फिर अभी तक साथ क्यों होते?
वह यूं घबड़ा रहे हैं
जानते हैं कि झूठ है सब
फिर भी शरमा रहे हैं।
सच की छाप लगाकर ख्याल बेचने के व्यापार से
वह इसलिये डरे हैं कि
उसमें अपनी जिंदगी के अक्स
उनको नजर आ रहे हैं।
कहें दीपक बापू
ख्यालों को हवा में उड़ते
सच को सिर के बल खड़े देखा है
कत्ल और धोखे का ख्याल होना
और सच में करना
अलग बात है
ख्याल तो खुद के अपने
चाहे जहां घुमा लो
सच बनाने के लिये जरूरत होती है कलेजे की
साथ में भेजे की
अक्ल की कमी है जमाने के
इसलिये सौदागर ख्याल को सच बनाकर
बाजार में बेचे जा रहे हैं।
ख्यालों की बात हो तो
हम एक क्या सौ लोगों के कत्ल करने की बात कह जायें
सामना हो सच से तो चूहे को देखकर भी
मैदान छोड़ जायें
पैसा दो तो अपना ईमान भी दांव पर लगा दें
सर्वशक्तिमान की सेवा तो बाद में भी कर लेंगे
पहले जरा कमा लें
बेचने वालों पर अफसोस नहीं हैं
हैरानी है जमाने के लोगों पर
जो ख्वाबों सच के जज्बात समझे जा रहे हैं
शायद झूठ में जिंदा रहने के आदी हो
हो गये हैं सभी
इसलिये ख्याली सच में बहे जा रहे हैं।

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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
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रावण तुम कभी मर नहीं सकते-कविता


रावण तुम कभी मर नहीं सकते
क्योंकि तुम्हारे बिना राम को लोग
कभी समझ नहीं सकते
बरसों से जला रहे हैं तुम्हारे पुतले
तुम्हारे दोषों को गिनाते हुए
हर बार तुम्हारी बरसी पर
रामजी जैसे बनने की सौगंध खाते हैं
पर तुम्हारा पुतला फूँकने के बाद भूल जाते हैं
रामजी की भक्ति करने की बजाय
तुम्हारे जैसे सुखों की तलाश में जुट जाते हैं
भक्ति के लिए बैठने की बजाय
तुम्हारी तरह माया के पीछे
दौड़ने में ही वह सुख पाते हैं
तुमने जो भेजा था मारीचि को
सोने का मृग बनाकर
सीता को भरमाने के लिए
राम तो जानते हुए उस छल में फंसे थे
रामजी का बाण खाकर वह भी
हुआ ऐसा अमर कि
पूरी दुनिया के लोग जानते हुए भी
मृग- मारिचिका में फंसने से ही मौज पाते हैं
युद्ध में रामजी का बाण खाकर
उनका दर्शन करते हुए प्राण त्यागते हुए
तुमने पाया है अमरत्व
रामजी का तो लोग लेते हैं नाम
मार्ग तो तुम्हारे ही पर चलते जाते हैं
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समस्त पाठकों को दशहरा पर्व की बधाई-दीपक भारतदीप

हास्य कविता -भूल गया अपना ज्ञान


एक बुद्धिमान गया
अज्ञानियों के सम्मेलन में
पाया बहुत सम्मान
सब मिलकर बोले दो ‘हम को भी ज्ञान’
वह भी शुरू हो गया
देने लगा अपना भाषण
अपने विचारों का संपूर्णता से किया बखान
उसका भाषण ख़त्म हुआ
सबने बाजीं तालियाँ
ऐक अज्ञानी बोला
‘आपने ख़ूब अपनी बात कही
पर हमारी समझ से परे रही
अपने समझने की विधि का
नहीं दिया ज्ञान

कुछ दिनों बात वही बुद्धिमान गया
बुद्धिजीवियों के सम्मेंलन में
जैसे ही कार्यक्रम शूरू होने की घोषणा
सब मंच की तरफ भागे
बोलने के लिए सब दौडे
जैसे बेलगाम घोड़े
मच गयी वहाँ भगदड़
माइक और कुर्सियां को किया तहस-नहस
मारे एक दूसरे को लात और घूसे
फाड़ दिए कपडे
बिना शुरू हुए कार्यक्रम
हो गया सत्रावसान
नही बघारा जा सका एक भी
शब्द का ज्ञान
स्वनाम बुद्धिमान फटेहाल
वहाँ से बाहर निकला
इससे तो वह अज्ञानी भले थे
भले ही अज्ञान तले
समझने के विधि नहीं बताई
इसलिये सिर के ऊपर से
निकल गयी मेरी बात
पर इन बुद्धिमानों के लफडे में तो
भूल गया मैं अपना ज्ञान