नारे कोई दियासलाई नहीं होते
जिनसे निकली चिंगारी
समाज में कोई बदलाव कर दे।
जिंदा रहने के लिये सभी संघर्षरत
संभव नहीं है
मतलबपरस्त इंसानों में
कोई ज़माने के लिये
वफा का भाव भर दे।
कहें दीपक बापू प्रेम का संदेश
सुनाते हुए प्रचार बहुत मिल जाता है,
दर्दनाक हादसों पर लगती भीड़
हमदर्दी दिखाते हर कोई हिल जाता है,
मिलता कभी कोई ही विरले फरिश्ता
जो बिना दाम लिये
किसी का घाव भर दे।
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शिक्षा बन गयी व्यापार
विद्यालय सुविधाओं के
विज्ञापन और प्रचार पर चलते हैं।
पुस्तकें हो गयी सौदे की शय
छात्र अब पुत्र की तरह नहीं
ग्राहक की तरह पलते हैं।
अध्यापक सिखा और पढ़ा रहे
अंग्रेजी चाल का तरीका,
थोड़ा बहुत मनोरंजन का सलीका,
भविष्य में आनंद का सपना
छात्र गुलामी के सांचे में ढलते हैं।
कहें दीपक धर्म से परे शिक्षा
कभी समाज नहीं बना सकती
निकल आये हम भ्रम के मार्ग
अब अपनी करनी पर हाथ मलते हैं।
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