अन्ना हजारे ने अपना ब्लॉग बंद करने का निर्णय लिया है। वैसे तो इस देश में बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने उनका ब्लॉग देखा होगा क्योंकि उस पर पाठ प्रकाशित होता ही था कि प्रचार माध्यम उसे अपने मंच पर मुख्य समाचार की तरह उपयोग करते रहे जिसकी वजह से उसको देखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। ऐसे में ब्लॉग होने का प्रभाव बाजार समर्थित प्रचार माध्यमों पर ही पड़ेगा जिनके लिये सनसनी फैलाने वाला एक स्त्रोत कम हो जायेगा। वैसे यहां भी स्पष्ट कर दें कि इस देश में गहरा चिंत्तन करने वाले पहले अन्ना हजारे की टीम के सदस्यों पर वर्तमान बाज़ार से समर्थित होने का आरोप लगाते थे तो अब उनको अन्ना का संपूर्ण आंदोलन ही प्रायोजित दिख रहा है। श्री अन्ना हजारे का ब्लॉग बंद होने का फैसला उनकी दृढ़ मानसिक शक्ति पर प्रश्न खड़े करेगा इसमें संशय नहीं है।
आखिर वह कौनसा पाठ है जिसमें ऐसा कुछ आ गया कि उनको लगा कि यह ब्लॉग बंद करना ही श्रेयस्कर है? अन्ना को अपने प्रचार के लिये वैसे ही किसी ब्लॉग की आवश्यकता नहीं थी तब क्या बाज़ार के प्रायोजन की वजह से उन्होंने इसे बनाया। दरअसल वर्तमान बाज़ार जिसे भी नायक बनाता है उसका ब्लॉग अवश्य फैशन के तौर पर जरूर बनवाता है। इससे वह एक तीर से दो शिकार करता है। एक तो नई पीढ़ी को अपने नायक की अंतर्जालीय छवि से घेरता है दूसरा यह कि टेलीफोन कंपनियों के कनेक्शन कम होने की संभावना बच जाते हैं जिनका खतरा उनको हमेशा बना रहता है। सीधी बात कहें तो अन्ना हजारे के पीछे कहीं न कहीं बाज़ार का प्रायोजन है और इसी कारण उनके यह ब्लॉग बना भी होगा। इसका लेखक भी उनका सहयोगी था जिसको वह अपनी बात लिख कर देते और वह उसे चिट्ठी के साथ टंकित कर प्रकाशित करता था। अनेक पाठ चर्चित हुए। जब अन्ना मौन थे तब ब्लॉग के माध्यम से वह जनता से जुड़े रहे। अब उनके ब्लॉगर सहयोगी ने उनकी एक अहस्ताक्षरित चिट्ठी के साथ एक पाठ प्रकाशित किया जिसमें अन्ना टीम के सदस्यों को अलोकतांत्रिक बताते हुए टीम में सदस्यों में बदलाव की बात कही है। अन्ना ने अपने ब्लॉगर से सहमत होने की बात से अब इंकार करते हुए बताया कि वह अपने विचार कहीं लिख लेते थे। एक समय उन्हें अपनी टीम के बारे में ऐसा विचार आया था तो लिख लिया पर उसे प्रेषित करने के लिये ब्लॉगर को नहीं दिया। उस ब्लॉगर को केवल हस्ताक्षरित पत्र प्रकाशित करने का अधिकार दिया था। अगर उनका यह स्पष्टीकरण सही माना जाये तो लगता है चूंकि वह ब्लॉगर उनका निकटस्थ है इसलिये ऐसा कागज उसके पास रह सकता है भले ही उसे प्रकाशन का अधिकार न मिला हो। अन्ना का यह विचार उसने अनाधिकार छापा है-यही स्पष्टीकरण अन्ना हजारे साहिब ने दिया है।
गंभीर चिंतकों की नज़र में अन्ना ने पहली ऐसी रणनीतिक गलती की है जो उनके व्यक्तित्व में गिरावट दर्ज करेगी। जब देश में चल रहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की बात आती है तब अन्ना हजारे को एक महानायकत्व का दर्जा देने का प्रयास प्रचार माध्यम करते हैं। जब तक आंदोलन किनारे पर था तब लोगों ने उसका अधिक अध्ययन नहीं किया और उस समय अन्ना सारे निर्णय स्वयं करते हुए एक चतुर व्यक्ति लगे। जब यह लोगों की समंदरनुमा भीड़ में आया तब धीरे धीरे लगा कि अन्ना हजारे एक ऐसा शीर्षक है जिसमें भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अनेक उपशीर्षकों के साथ एक बड़ा पाठ होगा। मतलब अन्ना हजारे एक नाम भर है। बाज़ार से प्रायोजित होने के प्रत्यक्ष प्रमाण भले न हो पर अन्ना टीम के सभी वरिष्ठ सदस्य ऐसे स्वयंसेवी संगठनों के कर्ताधर्ता हैं जो अपने कथित सामाजिक लक्ष्यों के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय बाजार से दान या चंदे के रूप में धन प्राप्त करते हैं। तय बात है कि बाज़ार का सामाजिक उद्देश्य लोगों को अपने हित में साधे रहना होता है। कम से कम आज के आधुनिक युग में कोई भी व्यवसायिक परिवार, संगठन या समूह धर्म के नाम दान या चंदा नहीं देता जब तब उसका कोई आर्थिक हित न पूरा होता हो। ऐसे में अन्ना की टीम के सहयोगी पेशेवर समाज सेवक हैं और उनसे यह अपेक्षा करना कि वह अपने चंदादाताओं का ध्यान नहीं रखेंगे यह सोचना गलत होगा।
बहरहाल अन्ना के सहयोगी ब्लॉगर ने अन्ना टीम के उन्हीं सहयोगियों के बारे अन्ना के ही ऐसे विचार प्रकट किये जो प्रचार माध्यमों में समाचारों के दौरान उनकी मानसिक हलचल को बयान करते थे। हस्ताक्षर नहंी है इससे यह तो माना जा सकता है कि उनमें निर्णायक तत्व नहीं है पर इतना तय है कि उनके सहयोगियों की स्थिति अब डांवाडोल हो रही है। यह सच है कि मानसिक हलचल के समय विचारों का उतारचढ़ाव आता है। उनको स्थिर मानकर उन पर प्रतिक्रिया देना तब तक ठीक नहीं है जब उनमें व्यक्ति का निर्णायक तत्व प्रमाणित नहीं है। हम अन्ना साहब की सफाई को स्वीकार करते हैं पर ब्लॉग बंद करने का निर्णय इस बात को दर्शाता है कि वह डर गये हैं। जिन सहयोगियों की आलोचना ब्लॉग में है वह अगर तत्काल स्वयं ही अन्ना टीम से हट जायें तो उनका आंदोलन हाल ही टॉय टॉय फिस्स हो जायेगा। बाजार से पैसा जुटाने वाले उनके वर्तमान सहयोगियों को संगठित प्रचार समूह का समर्थन भी इसलिये मिला है क्योंकि कहीं न कहीं से उनको आपने धनदाताओं से ऐसे निर्देश मिले हैं कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जनमानस में बना रहना चाहिए। इसके अलावा अन्य ने महानायकत्व की ऐसी छवि बना ली है जिसके निकट अन्य व्यक्तित्व पनप नहीं सकता। उन्होंने करीब करीब देश के सारे बड़े संगठनों से दूरी बना ली है। ऐसे में उनकी टीम के चार बलशाली सदस्य अगर उनका साथ छोड़ दें तो फिर अन्ना के लिये रालेगण सिद्धि से दिल्ली आना भी कठिन हो जायेगा। देश में सक्रिय बौद्धिक वर्ग तथा स्थापित सामाजिक संगठन अब अन्ना हजारे के आंदोलन को सक्रिय सहयोग शायद ही दें।
ऐसे में अपनी टीम के इन सदस्यों को प्रसन्न करने के लिये अन्ना हजारे ने ब्लॉग बंद करने का फैसला सुनाया पर इससे रूप से यह अप्रत्यक्ष रूप से संदेश भी हमारे सामने आ गया है कि अन्ना अपने आंदोलन की स्थिति को जानते हैं। अपनी गांधी जैसी छवि बनते देखकर वह खुश हो रहे हैं और उनको लगता है कि उनकी वर्तमान टीम ही इसमें सबसे अधिक मददगार है। जहां तक आंदोलन के नतीजों का सवाल है इस पर हम पहले भी बहुत कुछ लिख चुके हैं। गांधीजी ने हिंसा होने पर अपना एक आंदोलन वापस ले लिया था पर इससे उनकी छवि एक अहिंसक रूप में बढ़ी थी जबकि अन्ना साहेब ने अपना ब्लॉग लेकर यह साबित किया कि एक पाठ ने ही उनके ब्लॉग को उखाड़ दिया जो कि उनकी मानसिक हलचल का परिणाम रहा। ऐसा लगता है कि जब अन्न हज़ारे रालेगण सिद्धि में होते हैं तब उनकी मानसिक हलचल उन्हें लिखने के लिए प्रेरित करती है पर दिल्ली में आकर वह थम जाती है। उनके ब्लॉगर का तो यही कहना है कि वह दिल्ली में चौकड़ी के दबाव में बयान दे रहे हैं, जबकि अन्ना का अपनी टीम को बदलने का विचार उनके पास लिखित में है।
लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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टिप्पणियाँ
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# ‘बेहिचक’ होके वो लताड़ गया,
उसका खाया-पिया बिगाड़ गया,
सर पे टोपी लगी थी अन्ना की,
‘लोक्पाली’ से डर ‘लबाड़’ गया.
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#वो चाह इन्किलाब की तो कर रहे मगर यहाँ,
बने है अनशनो के रास्ते, तो त्यौहार है.
समीकरण है ठीक, बात फिर भी बन नहीं रही,
यहाँ है चौकड़ी अगर, वहां भी यार चार है.
हरएक टोपी छाप की दवा नहीं है कारगर,
है अन्ना केवल एक, और मरीज़ तो हज़ार है.
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