नैतिक आदर्श की बात,
बेशर्म बना देती है
उनको अंधियारी काली रात।
चेहरे की लालिमा को
उनके अंतर्मन का तेज न समझना
मेकअप भी निभाता है
चमकने में उनका साथ,
सूरज की रौशनी में
जिस सिर पर आशीर्वाद का हाथ फेरते
उसी की इज्जत पर रखते हैं रात को लात।।
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शरीर पर हैं सफेद कपड़े, नीयत में नंगई।
बरसों तक ढो रहा है समाज, सरदार समझकर
हाथ जोड़े खड़े मुस्कराते रहे, दिल जिनसे कुचले कई।।
नारी उद्धार को लेकर, मचाया हमेशा बवाल
मेहनताने में मांगी, हर बार रात को एक कली नई।
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टूट रहा है विश्वास
मर रही है आस।
जिन्होंने दिये हैं नारी उद्धार पर
कई बार दिन में प्रवचन,
करते रहे वही हमेशा
काली रात के अंधियारे में काम का भजन,
देवी की तरह पूजने का दावा करते दिन में
रात को छलावा खेलें ऐसे, जैसे कि हो वह तास।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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