गलतफहमी-हास्य व्यंग्य कविता


लंबा तगड़ा और आकर्षक चेहरे वाला
वह लड़का शहर की फुटपाथ
पर चला जा रहा था
सामने एक सुंदर गौरवर्ण लडकी
चली आ रही थी
यह सड़क बायें थी वह दायें था
पास आते ही दोनों के कंधे टकराये
पहली नजर में दोनों एक दूसरे को भाये
दृश्य फिल्म का हो गया
दोनों को ही इसका इल्म हो गया
लड़की चल पड़ी उसके साथ
अब वह बायें से दायें चलने लगी

चलते चलते बरसात भारी हो गयी
सड़क अब नहर जैसी नजर आने लगी
लड़की ने कहा-
‘यह क्या हुआ
यह कैसी मेरी और तुम्हारी इश्क की डील हुई
जिस सड़क से निकली थी
वह डल झील हो गयी
पर मैं तो चल रही थी बायें ओर
दायें कैसे चलने लगी
तुम अब पलट कर मेरे साथ बायें चलो’
ऐसा कहकर वह पलटने लगी

लड़के ने कहा
‘मेरे घर में अंधेरा है
एक ही बल्ब था फुक गया है
खरीद कर जा रहा हूं
मां बीमार है उसके लिये
दवायें भी ले जानी है
यह तो पहली नजर का प्यार था
जो शिकार हो गया
वरना तो दुनियां भर की
मुसीबतें मेरे ही पीछे लगी
तुम जाओ बायें रास्ते
मैं तो दाएं ही जाऊंगा
अब नहीं करूंगा दिल्लगी’

लड़की ने कहा
‘तो तुम भी मेरी तरह फुक्कड़ हो
तुम्हारे कपड़े देखकर
मुझे गलतफहमी हो गयी थी
जो पहली नजर के प्यार का
सजाया था सपना
दूसरी नजर में तुम्हारी सामने आयी असलियत
वह न रहा अपना
इसलिये यह पहले नजर के प्यार की डील
करती हूं कैंसिल’
ऐसा कहकर वह फिर बायें चलने लगी।
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दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका पर लिख गया यह पाठ मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसके कहीं अन्य प्रकाश की अनुमति नहीं है।
कवि एंव संपादक-दीपक भारतदीप

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