नया कवि, पुराना कवि-हास्य व्यंग्य और कविता


एक नया कवि मंच पर कविता सुनाने के लिये बुलाया गया तो उसने आते ही कहा‘,आज मैं अपनी एक कविता सुनाने जा रहा हूं। यह जोरदार कविता है। सुनिये-
अरे, पुराने घाघ कवियों
रोज रोज मंचों पर क्यों चले आते हो
अपनी पुरानी रचनायें सुनाते हो
सब हो गये बोर तुमसे
अब यहां से रिटायर हो जाओ
ताकि नये लोग आ सकें
पुराने और कबाड़ के माल जैसे लगते हो
तुम यहां से रुखसत हो जाओ’’

लोगों ने बहुत जोर से तालियां बजाईं। वाह वाह की आवाज से पूरा मैदान गूंज उठा। मंच पर बाकी कवि सन्नाटे में बैठे रहे। वह कवि भी माइक से हट गया तो दर्शक चिल्लाये-‘अरे, भई अपनी कविता तो सुनाओ। तब तो इन पुराने कवियों को रुखसत करें।’

नये कवि ने कहा-‘यह कविता नहीं तो और क्या थी? कितनी देर तक तो वाह वाह करते रहे।
एक दर्शक चिल्लाया-‘वाह वाह तो सभी के लिये करते हैं पर तुम्हारे लिये इसलिये की कि तुम अधिक देर तक नयी कवितायें सुनाओगे। यह तो चुटकी बजाकर चले गये। इससे तो यह पुराने भले थे।

नये कवि ने कहा-‘पहले यह सब हट जायें तभी तो सुनाऊंगा। वैसे अभी मैं यह एक ही कविता लिखी है जो सुना दी। फिर आगे लिखकर सुनाऊंगा।’

दर्शकों ने हाय हाय शुरू की दी। कुछ तो उसे मंच पर ही लड़ने दौड़े वह वहां से भाग निकला। तक हालत को संभालने के लिये एक पुराने कवि ने अपनी नयी रचनायें सुनाना शुरू कर दी।

‘नया नया कर सब चले आते
पुराने पर सभी मूंह फेर जाते
जब नया हो जाता फ्लाप
पुराने का ही होता है जाप
पुराने चावल और शराब का
मजा खाने और पीने में कुुछ और न होता
तो शायद हर जगह पुराना
शायर पिट रहा होता
नया चार लाईनों के हिट लूट रहा होता
अपने नयेपन इतराते हैं बहुत लोग
नहीं जानते क्या है मजा और क्या है रोग
अहसास ही है बस नये और पुराने का
नाम ही खाली जमाने का
शोर मचाकर कविता लिखी जा सकती
तो यहां हर कोई कवि होता
दर्द सभी को है पर
हर कोई शब्दों में उसे नहीं पिरोता
आधुनिक जमाने में तीस पर ही
कई बुढ़ापे के रोगों का होते शिकार
जवान दिखते हैं वह जो हैं साठ के पार
नये और पुराने आदमी में भेद करना
अब कठिन हो गया है
पुरानी गाड़ी खरीदते हैं कबाड़ में
और छह महीने चल चुकी कार को
कहते हैं सैकेंड हैंड
बजाते हैं खुशी का बैंड
आदमी के चक्षुओं के सामने ही
हो जाता है अंधेरे का व्यापार

उसकी कविता सुनकर नये कवि के पीछ भागने वाले श्रोता और दर्शक रुक गये और पूरा मैदान वाह वाह से गूंज उठा।
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यह हिंदी शायरी मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका’ पर लिखी गयी है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं है।
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टिप्पणियाँ

  • mahendra mishra  On सितम्बर 19, 2008 at 4:11 अपराह्न

    joradar hasy vyangy padhkar bahut anand aya . dhanyawad.

  • Brijmohanshrivastava  On सितम्बर 21, 2008 at 1:07 अपराह्न

    आपका जितना दखल प्राचीन ग्रंथों पर है ,जितना प्राचीन कवियों पर है उतना ही हास्य और व्यंग्य पर भी है /चहुमुखी प्रतिभा के धनी आपके लिए शब्द कहाँ से लाऊं = वो दिल कहाँ से लाऊं की जगह यही कह सकता हूँ की “” वो शब्द कहाँ से लाऊं तेरी शान जो बदाडे “”

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