बचना है कठिन ग्राहक का कट जाना-हास्य कविता
जाते थे पहले बाजार
खरीददारी कर आते
अब मार्केट में जाकर
शोपिंग कर आते
ऊंची आवाज में पहले लगती थी आवाज
अपने पास बुलाने के लिए
अब लगे होते होर्डिंग आकर्षक
ग्राहक को लुभाने के लिए
पहले तो थी फिर भी मोलभाव की गुंजायश
पर अब तो लुटने से नहीं बच पाते
दिन बीतते गए
बदल गया है अब ज़माना
कठिन हो गया गरीब का कमाना
उससे भी बचना है कठिन
ग्राहक का कट जाना
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दीपक भारतदीप, on
फ़रवरी 3, 2008 at 4:35 अपराह्न, under
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टिप्पणियाँ
haa aaj kal kamana bahut kathin hai,grahak ko tho lut lete hai,fixed rate ka board lagakar.golmaal hai bhai sab golmaal.
बन्धुवर…कटता तो पहले भी खरबूजा ही था और अब भी खरबूजा ही कटता है …
फर्क बस इतना है कि पहले छुरी खुद खरबूजे पे चलती थी अब खरबूजा छुरी पे चढा नज़र आता है …
हर हालत में ग्राहक को ही कटना है..
पहले दुकानदार आपस में कहा करते थी “आज तो कई ग्राहक कटे”
आजकल कहते हैँ “कोई आ के मरा?”