ब्लोगरों के वर्गीकरण को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. इसका वैसे कोई आधिकारिक वर्गीकरण नहीं हुआ है, पर निरंतर चिट्ठों का अध्ययन करते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुचा हूँ कि इसके दो वर्गीकरण हैं. -१. ब्लोग लेखक २.लेखक ब्लोग (writer cum blogar)
१.ब्लोग लेखक-इससे आशय यह है कि जिन लोगों ने कंप्यूटर के साथ इंटरनेट कनेक्शन लिया है और कुछ रचना कर्म के साथ संबध बढाने और उसे निभाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होने ब्लोग बना लिया है इसलिए लिख रहे हैं और लिखने की विधा में पारंगत भी हो रहे हैं.
२. लेखक (ब्लोग)- यह ऐसे लोग हैं जो कहीं भी लिखने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्हें अपने लिखने से मतलब है और ऐसे लोग को मित्र मिल जाये तो उनके लिए बोनस की तरह होता है. लिखना उनके लिए नशा है. वह पत्र-पत्रिकाओं में लिखते हैं और ब्लोग इसलिए बनाया है क्योंकि उस पर लिखना है. मैंने ब्लोग इसलिए बनाया क्योंकि मैं लिखना चाहता था, पर इसमें इतने सारे मित्र मिलेंगे यह सोचा नहीं था. मैं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में छप चुका हूँ पर इस ब्लोग विधा ने मुझे ब्लोगर बना दिया.
वैसे दिलचस्प बात यह है कि ब्लोग बनाने वालों ने इन्हें संदेशों के आदान-प्रदान करने के लिए बनाया था, पर जैसा कि हमारे भारत के लोग हैं कि विदेश से अविष्कृत चीज को अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं. वैसा ही कुछ लेखक इसे अपने लिखने के लिए इस्तेमाल करते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि इधर कुछ गजब के लोग ब्लोग लिख रहे हैं. वैसे ब्लोग मैं पिछले डेढ़ वर्षों से देख रहा हूँ और मेरा मानना है कि इसमें बहुत अच्छे लेखक आ गए हैं. मैं जब अभिव्यक्ति पत्रिका पढता था तब यह उस पर लिंकित नारद चौपाल के ब्लोग भी देखता था और उस समय मुझे इनकी विषय सामग्री इतनी प्रभावित नहीं करती थी-क्योंकि इसमें साहित्य जैसी विषय वस्तु अधिक नहीं दिखती थी-इसलिए कोई ऐसा विचार नहीं आता था. वह तो एक दिन एक ऐसे ब्लोग पर नजर पड़ गयी और उसमें एक संवेदनशील विषय पर लिखी पोस्ट ने मुझे प्रभावित किया और तब मुझे लगा कि यह तो अपनी पत्रिका की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह एक रोचक विषय है. इसमें कई मित्र मिलना मेरे जैसे लेखक के लिए बोनस है. जो इस पर कमेन्ट देते हैं और या मैं जिन्हें देता हूँ उनके लिए मेरे मन में मैत्री भाव रहता है. इसका मतलब यह नहीं है कि सभी लोग हर पोस्ट कमेन्ट दें या मैं उन्हें दूं- क्योंकि इन फोरम पर कोई हमेशा बना नही रहता. लिखना एक तरह से आपस में मैत्री भाव बढाने का तरीका है. अधिकतर कमेन्ट विभिन्न फोरमों से आती है क्योंकि ब्लोगर कमेन्ट लगाना जानते हैं. आप ताज्जुब करेंगे कि मेरे निजी मित्र जो मेरे ब्लोग पढ़ते हैं उन्हें अभी तक यह समझ में नहीं आया कि कमेन्ट कैसे देते हैं? मैं उनको कमेन्ट देने के लिए अधिक प्रेरित भी नहीं करता. मेरी पोस्ट पर कमेन्ट देने वाले अनेक ब्लोगरों को उनको नाम याद हैं. अभी मैंने एक अपने मित्र को गूगल का इंडिक ट्रांसलेट टूल इस्तेमाल करना बताया तो वह हैरान हो गया. अभी इस विधा के बारे अधिक लोगों को पता नहीं है और जैसे-जैसे इसका प्रचार बढेगा अधिक से अधिक लेखक इसमें आयेंगे.
इन ब्लोग के साथ अभी समस्या यह है कि लंबी चौडी पोस्ट लिखने का समय नहीं आया, पर आगे चलकर यह समय भी आयेगा पर वह तभी संभव हो सकता है कि लेखक को यकीन हो जाये कि उसे पढ़ने वाले बहुत हैं. मुझे ब्लोग बनाये हुए एक वर्ष हो गया पर फोरम पर आये आठ महीने हुए हैं. यह आश्चर्य की बात है कि जिन पोस्टों को फोरम पर दस लोग भी नहीं पड़ते वह महीनों तक अन्य पाठकों द्वारा पढी जातीं हैं. चाणक्य, कौटिल्य, रहीम और कबीर से संबंधित विषय सामग्री पर निरंतर पाठक आते हैं. लोगों की दिलचस्पी को देखते मुझे इन पर लिखने में मजा आता है क्योंकि इससे मुझे ‘स्वाध्याय”का अवसर मिलता है-जो कि किसी लेखक के लिए एक अनिवार्य बौद्धिक व्यायाम है.
लेखक स्वांत सुखाय भाव के होते हैं पर इसका मतलब यह नहीं होता की उनका समाज से सरोकार नहीं होता. देखा जाये तो असली लेखक वही है जो सामाजिक सरोकारों से संबंधित विषयों पर लिखे. ब्लोग की विधा को ऐसे लोग बहुत लंबे समय तक जिंदा रख सकते हैं, पर अभी यह तय नहीं है इसका आगे क्या स्वरूप होगा-यह आने वाले समय पता लग जायेगा. इतना तय है कि प्रतिदिन तीन सौ से अधिक पाठक मेरे ब्लोग पर आते हैं उससे यह लगता है इसमें लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है.