बंद तिजोरियों को सोने और रुपयों की
चमक तो मिलती जा रही है
पर धरती की हरियाली
मिटती जा रही है
अंधेरी तिजोरी को चमकाते हुए
इंसान को अंधा बना दिया
प्यार को व्यापार
और यारी को बेगार बना दिया
हर रिश्ते की कीमत
पैसे में आंकी जा रही है
अंधे होकर पकडा है पत्थर
उसे हाथी बताते
गरीब को बदनसीब और
और छोटे को अजीब बताते
दौलत से ऐसी दोस्ती कर ली है कि
इस बात की परवाह नहीं
इंसान के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही है
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यहाँ बोलने के लिए सब हैं आतुर
अपने बारे में सच सुनने से भयातुर
चारों और बोले जा रहे शब्द
बस बोलने के लिए
सुनता कोई नजर नहीं आता
अपनी भक्ति के गीत हर कोई गाता
जिन्दगी जीने का तरीका कोई नहीं बताता
गुरू सिखाता दूसरे को गुर
खुद सूरज उगने के बाद उठते
और बोलना शुरू करें ऐसे जैसे दादुर (मेंढक)
सुबह से शाम तक ढूढ़ते श्रोता
सच सुनने से रहते भयातुर
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