बिपति भए धन न रहे, रहे जो लाख करोड़
नभ तारे छिपि जात है, ज्यों रहीम भए भोर
कवि रहीम कहते हैं, जैसे प्रभात होते ही आकाश से तारागन विलीन जो जाते हैं, उसी प्रकार आपत्ति आने पर चाहे कई लाख-करोड़ धन भी पास हो तो वह भी समाप्त हो जाता है।
रहिमन राम न उर धरै, रहत विषय लपटाय
पसु खर खात सवाद सों, गुर गुलियाए खाय
कवि रहीम कहते हैं की कुछ लोग भगवान् राम को ह्रदय में धारण नहीं करते और भोग-विलास में डूबे रहते हैं । पशु की टांगों को स्वाद से खाने के बाद दवा भी खाते हैं।