अपने ख्यालो में
दुनियाँ भर की दौलत जुटाने
घर-परिवार के लिये
हर तरह की सुविधाएं बनाने
का खूबसूरत सपना लेकर
निकलता है जमीन पर
उसे सच करने के लिये
जिंदगी के सुनहरे पल
यूँ ही बरबाद कर देता
कहीं करता अपने से
बडे आदमी की जी-हुजुरी
कहीं करता अपनी ऊर्जा बेकार
अपने से छोटे को झुकाने के लिये
दिल की शांति ढूंढता है आदमी वहाँ
बाजार में शोर का साजो-सामान
सजता है बिकने के लिये जहाँ
किसी को खुद सुकून नहीं देता
घर-घर और दर-दर
भटकता अपनी तसल्ली के लिये
सुख कोई पेड़ पर लटका फल नहीं है
जो किसी के हाथ में लग जाये
अपने मन में रखें अंधेरा
तो रोशनी कहाँ से आये
भटकना तो होगा ही आदमी को
अपनी तसल्ली और सुकून के लिये
कितनो के घर उजाडता
कितने करता चमन वीरान
बन जाता बेईमान
अपना घर सजाने के लिये
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